रिश्तों की तकसीम से
बनी दीवारों से आहत
इक शख्स ने टोका यूँ हीं.
मैं तीरगी में कुछ ढूँढ रहा था,
और कुछ शिकायत थी उनको,
वो अटक रहे थे,
मैं भटक रहा था.
उनकी पेशवा आंखें,
ठहरी बदहवास साँसे,
क्षुब्ध चेहरे से कुछ लम्हें धीरे से खाँसें –
क्या खोजते हो इस जहाँ में,
बिना छ्त के इस मकाँ में?
बुने थे कुछ चेहरे, चुने थे कुछ रिश्ते,
फ़िर फरिश्तों की ईंट से था घर इक बनाया.
चेहरे मुँह बाये खड़े रहे,
दीवार छ्त को खा गए,
आंखें स्तब्ध, ज़ुबाँ खामोश, न जाने कैसे ये मंजर आया.
मेरे लफ़्ज़ों से फूटे
चंद जुम्ले मुतबस्सुम-
बहते बादलों से जन्मे
एक बूँद ही हैं हम तुम.
सावन, आषाढ़, या सर्दी की हो लहरें,
झील, झरने, या नदी में हम ठहरें,
तेरे टूटे हुए छ्त या टपकें हरे दूब पे,
मुख्तलिफ परिभाषाएं, पर बूँद ही हैं हम तुम.
मिटटी के घर की छतों से बने शहरें,
या हो फ़िर देशों की सीमाओं पे पहरें,
घर की कमरों में क़ैद हवा
या तो सड़ जायेगी
या फ़िर छ्त तोडके उड़ जायेगी.
मुख्तलिफ रिश्ते, दोस्ती, नाते, वास्ते,
अलग-अलग कमरों जैसे
छ्त खोजते हुए दीवारों से जकडे राब्ते.
जितने बड़े रिश्ते, उतनी बड़ी जंजीरें,
जितनी चौडी दोस्ती, उतनी बंद कुशादगी.
और टूटी हुई छ्त
अट्टहास लगाती, याद दिलाती –
आकाश है प्रेम
जो खुले कायनात में पलता है,
हवा की दीवारों
और दूब की धरती में ही
सतरंगी खुशबू से नीला छ्त ढलता है.
तेरे बनाये घर से दबी है कायनात
सिसकती सदायें और बिखरे हयात,
बिला खौफो-खतर ये सफर छोड़ दो
बिना छ्त की बनी हर घर तोड़ दो,
खोज सच की है तो आओ दरवेश चलें
चरगे-इश्क दिल में जला गृहप्रवेश करें.
शब्दकोश:
तकसीम-बंटवारा, तीरगी–अँधेरा, पेशवा- ज्ञानी, मंजर-दृश्य, मुतबस्सुम-मुस्कुराते हुए, मुख्तलिफ-भिन्न-भिन्न, तरह तरह के, कुशादगी-खुलापन, कायनात-धरती, सदायें-आवाजें, हयात-जीवन, बिला खौफो-खतर –भय और दुःख के बिना, दरवेश-पवित्र स्थल.
अच्छी कविता है। हिन्दी में और भी लिखिये।
बेहद खूबसूरत लफ्सो का इस्तेमाल करके बेहद खूबसूरत कविता है आपने बनाई….और उनमें हमें सबसे ज्यादा ये पंक्तियां पसंद आयीं
जितने बड़े रिश्ते, उतनी बड़ी जंजीरें,
जितनी चौडी दोस्ती, उतनी बंद कुशादगी.
और टूटी हुई छ्त
अट्टहास लगाती, याद दिलाती –
आकाश है प्रेम
जो खुले कायनात में पलता है,
हवा की दीवारों
और दूब की धरती में ही
सतरंगी खुशबू से नीला छ्त ढलता है.
Cheers
Bhawna 🙂
@उन्मुक्त,
धन्यवाद उन्मुक्त, ज्यादातर मैं हिन्दी में ही कवितायेँ लिखता हूँ. वैसे कुछ मैंने कवितायेँ अंग्रेज़ी में भी लिखी है. आप सारी कविताओं को पोएट्री बुक में जाके पढ़ सकते हैं. इसका लिंक ऊपर के टैब में दिया हुआ है. आगे भी लिखता रहूंगा, आप पढ़ें और अपनी टिप्पणियों से जरुर अवगत करायें.
@भावना
बहुत बहुत धन्यवाद, मुझे बहुत खुशी है की आपको यह कविता पसंद आई. आपने जिन पंक्तियों को चुना है, दरअसल उन्ही पंक्तियों ने इस कविता का ताना-बना बुना है. इसके आगे वाला अंतरा इस सफर को पूर्णविराम देता है.
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bahut ki khoob surat likhet hai aap … is choti se duniya main kaha kaha madikh dubka baitha hai dundhna aasan nahi.. 🙂